गुरुवार, 13 जुलाई 2017

उत्तराखंड राज्य विकास एक सोच

आज की बात उन लोगो के नाम जो रोजगार की तलाश में अपना उत्तराखंड त्याग कर देश के अन्य हिस्सों में चले जाते है.  जब से उत्तराखंड राज्य का उदय हुआ तब लोगो के मन में एक बात थी की अब उन के राज्य का भाग्योदय होने से कोई नहीं रोक सकता।

उत्तराखण्ड राज्य को बने हुए भी अब बहुत समय हो गया इस बीच इस राज्य का दुर्भाग्य यह रहा की यहाँ राजनैतिक अस्थिरता रही राज्य में कई मुख्यमंत्री देखे. 
और योजनाओ के किरवयवांन से जायदा नेताओं को अपने पद और अपनी कुर्सी की चिंता सताती रही. 

अब जब की राज्य और केंद्र में बीजेपी की सरकार है, तो देखना है की इस बार हम विकास को कहा तक देख पाएंगे।

वैसे तो जब भी हम गांव रोजगार की बात करते है तो बस वही घीसा -पीटा जबाब मिलता है की हम पहाड़ी राज्य है यहाँ संसाधनों की कमी है और सरकारी खजाने में पैसे की कमी है, लेकिन अगर आप बात पहाड़ी राज्यों की करते है तो आप एक बार पूर्वोत्तर राज्यों का भर्मण कर आये तो पता चलेगा की अगर चाह हो तो कही भी विकास की गंगा को बहाया जा सकता है। 

में केंद्र सरकार और राज्य सरकार को अपने इस ब्लॉग के माध्यम से बताना चाहता हु अगर हम ने जल्द उत्तराखड में विकास की गंगा नहीं बहाया तो वो दिन दूर नहीं जब यहाँ के लोग भी अलगवववाद की बात करने लगेंगे और यहाँ पर भी लाल झंडा फहराया जाने लगेगा। 

अगर पहाड़ के लोग सीधे साधे मेहनती है तो इस का मतलब ये बिलकुल नहीं लगाया जाना चाहिए की आप उन का उपयोग कैसे भी कर सकते है। 

इस लिए मेरा अनुरोध है सभी लोगो से इस बोल्ग को जयादा से जायदा लोगो मैं शेयर करे ताकि आप की बात राज्य सरकार  के कानो तक पहुंचे 

जय उत्तराखंड जय भारत !!!

शनिवार, 3 दिसंबर 2016

"उम्मीद की किरण लक्ष्यम "


                        "उम्मीद की किरण लक्ष्यम "




    जब हम बात करते है डेल्ही की,  तो मन में एक ही  बात आती है और वो है,  भागदौड़ वाली जिंदगी पैसा पैसा हाय पैसा वाली जिंदगी !

और जब हम बात करते है वसंत कुञ्ज की तो सब से पहले जो बात दिमांग में आती है वो है, की वह बड़ी ही समृद्ध जगह  है  जहा पर घर होना आज भी डेल्ही में बड़े गर्व की बात माना  जाता है !

    19  नवम्बर 2016  को मुझे मौका मिला की  में अपने दोस्तों के साथ,  एक फोटोग्राफर का  सामाजिक उत्तरदायित्व वाले फोटो शूट में  जाने का, और हम पहुच गए इ ब्लॉक वसंत कुञ्ज। में धन्यवाद करना कहूंगा आप सभी ग्रुप में भाग लेंगे वाले सहभागियों का जिन्होंने इस फोटो शूट को सफल बनाया और में ये भी आशा करता हु की आगे भी हम इस प्रकार के प्रयास करते रहेंगे.

    वेसे तो डेल्ही मैं जुग्गी झोपडी होना कोई अवसाद नहीं है,  की क्योकि जब भी आप किसी भी एरिया मैं जाते है तो आप को जुग्गी झोपडी जरूर मिलेगी, और ये बात भी सुच है की अब  डेल्ही की ज्यादतर झुग्गी झोपड़िया  अब विकास की रह में  चल  पड़ी है,  पर जब हम इ ब्लॉक वसंत कुञ्ज की झुग्गी झोपड़ियो मैं पहुचे तो आज आजादी के 65 साल बाद भी यहाँ  कुछ नहीं बदला है,

इन झुग्गी झोपड़ियो में आज तक आधारभूत सुविधाओ का विकास नहीं हुआ, जैसे की यहाँ पीने के पानी के लिए आज तक कोई कनेक्शन नहीं है, बिजली भी आज तक ये लोग चोरी जलाते है, और जहा हमारा पूरा देश स्वच्छ भारत के लिए एकजुट हो कर अभियान चला रहा है वहाँ  आज तक यहाँ पर कोई स्वच्छता के लिए  नहीं आता,  कोई अभियान नहीं चलाया गया, यहाँ पर आज भी लोग खुले में  सौच  के  लिए  मजबूर है उसकी भी यहाँ पर आज तक कोई व्यवस्था नहीं की गयी है.

मैं धन्यवाद करना कहूंगा लक्ष्यम को (NGO ) जिस ने अपने प्रयासों से यहाँ के लोगो जीवन में बदलाव लाने
की पहल की है, उन्होंने यहाँ पर एक आधारभूत स्कूल की संरचना की है जहा पर यहाँ के बच्चे आकर आधारभूत शिक्षा लेते है साथ साथ उन्हें आगे पढने के प्रोसाहित किया जाता है, और उन्हें यहाँ पर कुछ हस्थकारी का काम सिखाया जाता है ताकि की वो सड़क के किनारे भीख  माँगने जाने के बजाय अपने हाथो के जरिये किये गए कामो से धन का अर्जन करे.



जब हमारा ग्रुप यहाँ पंहुचा तो यहाँ  के,   लोगो  के मन में एक उम्मीद की किरण आयी की शायद कोई सरकारी डिपार्टमेन्ट उन की सुध लेने आया है पर जब उन्हें पता चला की हम किसी और ग्रुप से है तो उन्होंने बोला की पिछले 40  साल से इसी तरह जीने के लिए मज़बूर है अगर आप हमारी समस्याए ऊपर (सरकार) तक पंहुचा दे तो अच्छा हो.

देखने में  भले ही यह पहल  छोटी सी  लगती है पर हमारा मानना है की  लोगो के जीवन को आगे ले जाने में किया गया कोई भी कार्य कम महत्वपूर्ण नहीं होता बल्कि उस के पीछे के वो उदेश्य महत्वपूर्ण होते जिन  द्वारा  हम लोगो के जीवन स्तर में बदलाव ला सकते है ताकि वो ये पिछड़ा वर्ग भी उन लोगो के समकक्ष  आ सके जो अपने आप को सभय  समाज कहलाता है.













मंगलवार, 3 मई 2016

"उत्तराखंड राज्य और भारतीय रेलवे एक सपना"

                                         
                                          
                                             उत्तराखंड राज्य और भारतीय रेलवे एक सपना

   जब भी  किसी नये राज्य का गठन होता है तो वहां  के लोगो में  उम्मीदें जागती   है की अब उस राज्य के विकास को कोई नहीं रोक सकता, क्योकि आखिर उस नये राज्य का गठन उन्ही उम्मीदों  के साथ हुआ था.

आज बात एक ऐसे ही एक   राज्य की जिसे भारत का 27  वा  राज्य होने का गौरव मिला  उत्तराखंड,  उत्तर प्रदेश  से अलग हो के बना राज्य है ! उत्तराखंड के लोगो के  आंदोलन व संघर्ष्  से एक नए राज्य का उदय हुआ जिसे के उत्तराखंड व देव भूमि के नाम से पुकारा जाता है, जब केन्द  सरकार ने यह निर्णय लिया उस समय उत्तराखंड  के लोगो में उम्मीद की किरण दिखाई दी। अब उन्हें लगने लगा  की   अब  प्रदेश का विकास और भी बढ़िया तरीके से हो सकता है और उन्होंने इस के लिए के लड़ाई लड़ी और आख़िरकार वो दिन भी आया जब लोगो के मन की बात को सरकार से समझा और 9 नवंबर  2000 को एक नए उत्तराखंड राज्य का उदय हुआ.

नया राज्य नयी उम्मीदों के साथ एक नया राज्य पर गठन के 16  साल के बाद भी आज भी कोई खास विकास इस राज्य ने नहीं देखा है, तथा 2015  के सरकारी आंकड़ों के हिसाब से करीबन 2600 गाओं का पलायन हो चूका है  उसकी एक बड़ी वजह यहाँ की राजनीतिक अस्थिरता  और और कुछ राजनेताओ की इच्छासक्ति की कमी भी है.

कांग्रेस की सरकार के समय जब 2009 का रेल बजट सदन में रख गया था उस समय उत्तराखंड को रेल मार्ग से जोड़ने की बात हुई थी और ओर  तत्कालीन रेलमंत्री सुश्री ममता बनर्जी ने सदन को यह विश्वास दिलाया था की अगर प्रदेश सरकार सहयोग करे तो भारत सरकार उत्तराखंड को रेल मार्ग से जोड़ने को तैयार है.

पर अभी तक जैसा की उत्तराखंड में कोई रेल परियोजना दूर दूर तक नहीं है इस से तो यही   प्रतीत होता है की किसी भी राज्य सरकार सरकार  ने रेल मंत्रालय के साथ  विचार विमश नहीं किया।

दूसरा अगर राज्य सरकारों को लगता है की वह इस योजना के लिए उन्हें काफी  धन खर्च करना पड़ेगा तो ये सही है पर भारत की सरकार जनकल्याणकारी सरकार है और इस में ऐसा कुछ भी नहीं की राज्य सरकार कुछ नहीं कर सकती हो.


जहां तक उत्तराखंड की सरकार का और इस प्रदेश के विकास का मुदा है अभी तक की सभी सरकारे ऐसा  करने में विफल रही है और एक ब्लोगर होने के नाते में यह कहना चाहता हु की अगर आप किसी भी ऐसे राज्य की तुलना करेंगे जहां पर रेलमार्ग है और और जहां पर नहीं है तो आप पायंगे की वो राज्य जयादा विकासरत है जहां पर की रेलमार्ग है।  उदहारण  जैसे की हिमाचल प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, और असम.
रेलमार्ग के बन जाने से इस पहाड़ी राज्य का पर्यटन के क्षेत्र   काफी विकास की सम्भावनाएं है

और जहां तक धन और रोजगार की बात है मेरा एक और सुझाव है क्यों न मनरेगा को रेल के विकास से जोड़ दिया जाये इस से दो फायदे होंगे एक तो पहाड़ के लोगो को रोजगार मिलेगा वही दूसरा इस प्रदेश में धन का प्रवाह शुरू हो जायेगा जिससे इस प्रदेश जो की मुखयतः पहाड़ी लोगो का प्रदेश है उन को फायदा होगा.

उत्तराखंड रेलमार्ग बन जाने से राज्य की दशा और दिशा का बदलना तय है यहाँ की ारथवय्वस्था का बढ़ाना  तय है इस लिए उत्तराखंड की तरक्की और यहाँ के लोगो की आर्थिकं वयव्था को बढ़ाने के लिए आप का  सहयोग जरूरी है।



सन 2009  उस समय का समाचार पत्र का फोटोकॉपी आप सभी के लिए. 


इस घोषणा के बाद प्रदेश के कुछ समाजसेवियों ने भी कोशिस की और कुछ पत्राचार भी किया उस मैं से एक पत्राचार की छाया प्रति सलगन :-






बुधवार, 17 जून 2015

" उत्तराखंड स्थायी निवास प्रमाण पत्र"



       कुछ दिन पहले मुझे अपने गॉव  जाने का मौका मिला, कुछ पारिवारिक समारोह था, वैसे अब पहले के मुकाबले उत्तराखंड के गॉव  का भी मौसम बदल गया है, अब लोगो ने भी अपने घरो में पंखे लगा लिए है, क्योकि रात में भी अब गर्मी बढ़ गयी है, वैसे आप सोच रहे होंगे की में आज सायद गॉव के मौसम के बारे में ये ब्लॉग लीख  रहा हू  तो मैं  आप को बता दू की ऐसा मेरा आज का विचार नहीं है, आज में बात करूँगा सरकार द्वारा  प्रदान किये जाने वाले स्थायी निवास प्रमाण पत्र की, 

     आज भी जहा गांव  में रोजगार के साधनो की भयंकर कमी है, वैसे लोगो को लगा था की शायद अलग उत्तराखंड होने के बाद परिस्थी कुछ बदलेगी, पर ये आशा अभी तक आशा ही है, अगर कही विकास हुआ भी है तो वो छेत्र है जो की पहले से ही विकसित है या फिर वो प्लेन (सपाट) छेत्र है, जो असल पहाड़ का छेत्र है उस की परस्थिती  में कोई बदलाव नहीं आया है उन छेत्रो की इस्थ्ती आज भी वैसी ही  है जैसा की अलग राज्य बनने से पहले थी . 

राज्य सरकार की बहुत सी योजनाओ का लाभ उठाने के लिए आप को अपना स्थायी निवास प्रमाण पत्र की प्रती  लगानी  पड़ती है, पर हमारा  दुर्भाग्य जो स्थायी निवास प्रमाण पत्र सरकार की तरफ से लोगो को फ्री में बनाना  चाहिए उसको  बनवाने के लिए राज्य में दुकाने खुल रही है, जहा पर स्थायी निवास प्रमाण पत्र बनवाने की एवज में पैसा लिया जाता है, और इन दुकानो को  खुलवाने में राज्य सरकार अपना पूरा सहयोग  दे रही है, क्योकि ऐसा प्रतीक होता है की सरकार में बैठे हुए कुछ लोग जो की इन दुकानदारो से मिले हुए है उन के हिसाब से नियमो में फेर बदल 
करवा कर लोगो को परेशान करने का काम कर रहे है, इसका एक उदहारण आजकल आप जब भी अपना स्थायी निवास प्रमाण पत्र बनवाने जाये तो अपना भाग 2 रजिस्टर की कॉपी उस में प्रधान की मोहर ले कर तहसील जाना पड़ता है उस के बाद वहा के सरकारी बाबू अपना पैसा बनाने के लिए आप के फ्रॉम में 10 गलतिया बताएँगे, और जैसे ही आप उनको  कुछ चढ़ावा देंगे वो आपके फॉर्म की  सभी गलतियों को नज़र अंदाज़ कर आप का स्थायी निवास प्रमाण पत्र बना कर दे.

दूसरा उदहारण अब स्थायी निवास प्रमाण पत्र ऑनलाइन बनने लगे है पर इस को बनाने के लिए भी आप को तहसील ही जाना पड़ता है, जब आप को तहसील ही जाना है तो किस बात का ऑनलाइन।।। उसके बाद वहा पर आधे टाइम लाइट नहीं होती कभी वहा पर सरकारी बाबू छूटी पर होते है कभी वहा पर इंटरनेट नहीं काम करता, अगर इन सब बातो से कोई परेशान होता है तो वो है, मजबूर आम और गरीब आदमी, जो बड़ी मुश्किल से अपने गॉव  से वहा तक पहुचता है फिर भी उस का स्थायी निवास प्रमाण पत्र नहीं बनता, अब मेरा सवाल ये है की सरकार क्या कर रही है क्या उस को नहीं मालूम की गॉव  में  लाइट और इंटरनेट की क्या हालत है, 

वो आम आदमी जो की स्थायी निवास प्रमाण पत्र बनवाने आया था 50 किलोमीटर  दूर से अपना पैसा अपना टाइम निकाल  कर जिसने अपने कई कामो को छोड़ कर अपना स्थायी निवास प्रमाण पत्र की बनवाने के लिए इतनी दूर से आया है, क्या कोई है जो उसकी सुध ले रहा है… 

दोस्तों मुझे बड़ा दुख होता जब में देखता हू  की कोई वय्क्ति  अपने काम को करने के लिए सरकारी ऑफिस के चक्कर लगाता लगाता थक जाता है पर किसी को उस की कोई सुद्ध नहीं।।।

वैसे ही उत्तराखंड की लोगो को  गरीबी ने  मारा  है, और ये सरकारी क़ानून भी उन को मारने का काम कर रहे है.

हमें चाहिए की सरकारी योजनाओ का सही तरीके से किर्यान्व्यन हो , जो की वहा के निवासियों के लिए सुविधाजनक हो जब  सरकारी योजनाये बने उस में इस बात का ध्यान जरूर रखा जाये की कौन सी योजना पहाड़ी छेत्रो के लिए है और कौन से प्लेन छेत्रो के लिए.… 

अगर आप मेरे इस ब्लॉग के साथ है तो कृपया इस को अपने दोस्तों तो शेयर करे ताकि ये ब्लॉग उन लोगो तक पहुंचे जो इस समस्या की जड़ मैं है। … 


जय उत्तराखंड!!!




















सोमवार, 20 अप्रैल 2015

" Billing is Heaven for peraguliding " पैराग्लाइडिंग का सवर्ग बिलिंग "


    जब आप अपनी रोजमर्रा की जिंदगी से परेशान हो गए हो, और आप  का मन  कुछ नया करने को करे तो आप के लिए एक बहुत ही बढ़िया और साहसिक कार्य है "पैराग्लाइडिंग!  हो सकता है आप में से कुछ लोग ऐसे भी हो जो इस का नाम पहली बार   सुन रहे हो और कछू लोग ऐसे भी है जिन्होंने इस के बारे मैं सुना तो हो पर कभी इतना ध्यान न दिया हो !

    तो आज बात  हमारे  पैराग्लाइडिंग वाले साहसिक कार्य की, वैसे तो मैं बड़ा ही घुमक्क्ड़ किसम का व्यक्ति हु  और इस घुमक्क्ड़पन का  साथ मेरी धर्म -पत्नी  अच्छे से देती है   क्योकि में आज तक जीतनी भी जगह पर घुम्मकड़ी करने गया हु उस मैं 80 % आईडिया उन का ही है, तो बस क्या था की हमें मौका मिला "देव  भूमि हिमाचल प्रदेश" जाने का, वैसे तो हम दोनों उत्तर भारत में कई जगह घूमे है पर ये पहला मौका था  जब हम हिमाचल जा रहे थे, मन में बड़ा ही उत्साह था, आखिर एक एक पहाड़ी मूल का आदमी, दूसरे पहाड़ी छेत्र  जा रहा था, तो बड़ी उम्मीदे और बड़ा उत्साह ! बस फिर क्या था दोनों पहुंच गए हिमाचल प्रदेश और हिमाचल में "पालमपुर" पालमपुर में ठहरने के दो कारण थे पहला की मेरे साथ काम करने वाले मेरे सहयोगी गुलशन का विवाह था और दूसरा की पालमपुर एक ऐसी जगह पर इस्थित  है जहा से आप "धर्मशाला, मैक्लोड गंज, बैजनाथ मंदिर और भारत में पैराग्लाइडिंग  के स्वर्ग बिलिंग बहुत्त आसानी से पहुंच सकते है,  हमने अपना विचार बनाया की हम भी जायेंगे बिलिंग और हम भी लुप्त उठाएंगे पैराग्लाइडिंग का !

   तो मन में उमंग और तरंग लिए हम भी चल पड़े बिलिंग लिए, वैसे में आप को बता दू की बिलिंग पहुचने के लिए आप के पास विकल्प है पहला तो आप वहा जाने के लिए टेक्सी किराये पर ले ले और  या फिर आप बीड तक बस में जा कर वह से टेक्सी ले ले क्योकि कोई भी बस आप तो बिलिंग तक नहीं ले कर जाएगी, हमने बीड पहुंच कर बात की वहा के लोकल लोगो से उन्होंने बताया की यहाँ पैराग्लाइडिंग पिछले 5 सालो में बड़ा ही लोकप्रिय हुआ है, इस की वजह से यहाँ के लोगो को रोज़गार मिला है और ये भारत में पैराग्लाइडिंग का स्वर्ग है.

   बीड मे ही हमारी मुलाकात हुई राकेश जो की यहाँ पर पर्यटकों को पैराग्लाइडिंग करवाते है, हम उन्ही  साथ चल पड़े बिलिंग के  लिए जो की बीड से 12 किलोमीटर दूर है, रास्ते में राकेश ने बताया की बिलिंग की पैराग्लाइडिंग विश्व में दूसरा स्थान रखती है, वैसे अब की बार बिलिंग में पैराग्लाइडिंग का विश्व कप होने जा रहा है.

जैसे ही हम बिलिंग पहुंच वहा का नज़ारा देखते ही बनाता था, बहुत ही सुन्दर और लोग क्या मस्ती कर रहे थे, कुछ ऐसे लगा जैसे लोगो को पंख लग गए हो, बहुत से लोग तो ऐसे हवा में हिंडलो ले रहे थे जैसे हवा मैं झूला झूल रहे थे,  हमने भी हवा में उड़ने का साहस किया हमारा अनुभव भी एक दम अविस्वनीय लग रहा था हम आसमान मे थे और हमारे पायलट हमें बदलो और बर्फ के पहाड़ो के पास ले जा रहे थे, बदलो के बीच हमारे साथ कभी कभी पक्षी भी आजाते थे सोच कर ही रोमांचित हो जाता था की हम भी आज पक्षी की तरह से उड़ रहे है ये सभी   अनुभव कभी न भूलने वाला है ऐसा लगा जैसे आप को सच में पंख लग गए हो…